बंद कमरे में नहीं आती ज़िन्दगी की खुशबू,
चल अलस के मारे मन, बाहर निकल चल.
धूप जला दे न, जब तक तेरे अहम् को,
ये बनावटी चेहरा धूल में न धुत हो जाए जब तक,
हो ना जाए जबतलक, तेरी सोच थोड़ी और तरल.
चल अलस के मारे मन, बाहर ही खेल चल.
चल अलस के मारे मन, बाहर निकल चल.
धूप जला दे न, जब तक तेरे अहम् को,
ये बनावटी चेहरा धूल में न धुत हो जाए जब तक,
हो ना जाए जबतलक, तेरी सोच थोड़ी और तरल.
चल अलस के मारे मन, बाहर ही खेल चल.
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