Saturday, December 4, 2010

अब पता चला

अब पता चला,
कितनी बारिशों से गुज़रे हो तुम,
और कितने तूफानों में अभी भी ग़ुम.
अब पता चला,
क्यूँ होश नहीं तुम्हे मेरे वजूद का,
अपने वजूद से जो रूठे बैठे हो तुम.

बात करते हो तो,
लगता है, और सब बेमानी है.
फ़िज़ूल कि गुफ्तगू,
में उलझा देते हो तुम.
अब पता चला,
क्यूँ बात बात पे दिल दुखा देते हो तुम.

रोज़ मेरे सब्र, मेरी सोच को,
गिल्ली डंडा बना छेड़ना पसंद है.
कभी दिल को छूना,
कभी दिल को भेड़ना पसंद है.
अब पता चला,
क्यूँ दुनिया भर का पंगा लेते हो तुम.

खबर है मुझे,
तुम अक्सर खो जाते हो.
तुमको रात को अब सपने नहीं आते,
अक्सर आँखें खोल के ही सो जाते हो.
अब पता चला,
इन मासूम शरारतों में कितना डर छिपाते हो तुम.

अब पता चला,
क्यूँ होश नहीं तुम्हे मेरे वजूद का,
अपने वजूद से जो रूठे बैठे हो तुम.
अब पता चला,
कितनी बारिशों से गुज़रे हो तुम,
और कितने तूफानों में अभी भी ग़ुम.

First three days at Ummeed Home

Fixing..

Picking out the weed,
never appealed to you much.
Getting the right seed,
wasn't easy as such.
Still, I see you fixing
one day at a time.
Only to get deeper
in the slime.
Digging out holes
for tomorrow's plants.
Dealing with parasites
and dead ants.
I see you fixing
so often, I say,
I think I'll stay
till you till..
but we both know,
I will have to go away.

For her and her, women still fighting it out..