Thursday, July 28, 2011

संगम विहार

आज कल कुछ ऐसे परिचय कराया जाता है,
नरक को नरक नहीं कहते अब..
संगम विहार कहके डराया जाता है.

७ रुपैये में रोलर कोस्टर ऑटो वाले भैया,
इन मशहूर गलियों में गालियाँ यूँ दौड़ाते है,
कुछ एक हड्डियाँ, कुछ एक पसलियाँ,
और कुछ एक मूड के टुकड़े,
गटर की नदियों में बहते चले जाते है.
रोज़ एक नए गड्ढे पे,
दिल को झटके देके मरवाया जाता है,
हाँ जी अब, संगम विहार कहके डराया जाता है.

सैकडों साइकिल, लाखों लोग,
चंद घड़ियाँ ट्रैफिक की हवस में.
बदहवास शोर, अन्दर भी, और बाहर भी.
सपनों में भी है बहरे होने का डर,
जी करता है, बन जाऊं नेता, खा लूं कसमें,
कुछ तो बदलूँ, एक रोड ही बना दूं,
फ़िज़ूल ही खून गरमाया जाता है,
कि अब, संगम विहार कहके डराया जाता है.

Dedicated to the potholes, stagnant sewer water, perpetual traffic, honking, ancient roads and drainage system at Sangam Vihar!... and also to the bravery of the people who are living there, knowing that if one day an ambulance/fire brigade is needed at that place, it might take 'quite a while' to reach..