Friday, July 23, 2010

खाली पेट

सीले बिस्किट,  आधी प्याली चाय,
क्यूँ ना, आज खाली पेट मुस्कुराया जाए?
छोटा-सा तरबूज़ सात हिस्सों में,
मज़ेदार गरीबी ऐसी, जो सुनी थी कहानियों में, किस्सों में.
एक-चौथाई बाल्टी से ही नहाया जाए,
क्यूँ ना, आज खाली पेट मुस्कुराया जाए?

एक कम्बल में चार छेद,
चार छेदो से निकलते चार छोटे सर.
उनको परियों की दुनिया में उलझाया जाए,
लाड़ के कम्बल तले सुलाया जाए.
क्यूँ ना, आज खाली पेट मुस्कुराया जाए?

बरसों पहले फूलों से दोस्ती की थी,
उनके रंगों में अपने रंग कहीं छिपा दिए.
कुछ रंगों को तो वापस लाया जाए,
पतझड़ के बाद, ये फूल शायद फिर आये ना आये.
अभी फिलहाल, खाली पेट मुस्कुराया जाए!

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