Saturday, March 19, 2011

बूढ़ा पल


चीज़े होती है कुछ इस रफ़्तार से आजकल,
गुमसुम सा रहता है बीता हुआ पल.
शायद मालिक पेटी से निकाल ले उसे कल,
इस असफल आस में,
उसके सफ़ेद बाल आते है निकल.

एक दिन, बूढ़ा पल
पेटी से बाहर जाता है फिसल.
मचा देता है ज़हन में, अजीब सी हलचल.
अब न मालिक उसे संभाल पाए,
न खड्डे में डाल पाए.
रफ़्तार में पढ़ा दखल,
पन्ने पलट रहे है मालिक आजकल.

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